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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2653
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

अध्याय - 13

भारतीय समाज का सामाजिक स्तरीकरण : जाति, वर्ग एवं लिंग

(Social Stratification of Indian Society: Caste, Class and Gender)

 

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा
सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ बताइए। शिक्षा के स्तरीकरण पर पड़ने वाले प्रभाव को बताइए तथा स्तरीकरण का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे भी समझाइए।

उत्तर -

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ

प्राय: यह माना जाता है कि हम सब समान हैं, परन्तु ऐसा नहीं है। हममें से कुछ धनी हैं, कुछ निर्धन हैं, कुछ शक्तिशाली हैं और कुछ शक्तिहीन हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से भिन्न है तथा व्यक्तियों में असमानता है। कुछ की समाज में विशेष स्थिति एवं स्तर है और कुछ का निम्न स्तर है, यह सामाजिक असमानता प्रत्येक स्थान पर मिलती है। सामाजिक संरचना की कुछ सार्वभौमिक विशेषताएँ हैं जो असमानता को जन्म देती हैं। दूसरे शब्दों में, कुछ सामाजिक संरचना अपने संगठन, कार्य, स्वास्थ्य एवं व्यवस्था के आधार पर समाज मैं भिन्नता को जन्म देती है। इस भिन्नता के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण किया जाता है। स्तरीकरण में सामान्यत: सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक आरोही क्रम होता है। स्वाभाविक तथा मानवीकृत स्तरीकरण में आरोही क्रम होता है। जैसे प्रजातान्त्रिक स्तरीकरण में गोरे व्यक्ति को काले व्यक्तियों से उत्तम माना जाता रहा है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग को महिला वर्ग से उच्च माना गया है। आर्थिक एवं राजनैतिक दृष्टि से स्तरीकरण स्थायी नहीं होता है। राजनीति में स्तरीकरण बहुमत पर निर्भर करता है जबकि आर्थिक स्तरीकरण में समृद्धि तथा प्रगतिशीलता को आधार माना जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषाएँ

मूरे के अनुसार - "स्तरीकरण समाज का वह विभाजन है, जिसमें सम्पूर्ण समाज को कुछ उच्च तथा निम्न इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है। "

मेलबिन के अनुसार - "स्तरीकरण विभेदीकरण एवं मूल्यांकन के संयोग का परिणाम है। "

आर. के. मुखर्जी के अनुसार - "सामाजिक स्तरीकरण को विभिन्न उच्च और निम्न वर्गों में विभाजित करने और उसी के अनुसार सामाजिक संरचना में उनकी स्थिति व भूमिका को निर्धारित करने की एक सामाजिक व्यवस्था है।

सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएँ

यह निम्नलिखित हैं-

(1) सामाजिक स्तरीकरण प्रत्येक समाज में विद्यमान रहा है। आदिकाल से आज तक कोई ऐसा समाज नहीं पाया गया, जिसमें स्तरीकरण न हो, परन्तु इसके स्वरूप और आधारों में अन्तर हो सकता है।

(2) प्रत्येक काल में और प्रत्येक समाज में सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप में अन्तर रहा है। स्थान, काल, सभ्यता और संस्कृति के अनुसार इसके अनेक स्वरूप देखे जा सकते हैं।

(3) सामाजिक स्तरीकरण प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में अवश्य विद्यमान रहा है। प्राचीन काल में इसके आधार आयु, लिंग, जल, शारीरिक शक्ति आदि प्रदत्त गुण थे, जबकि आधुनिक काल में अर्जित गुणों का विशेष महत्व है।

(4) सामाजिक स्तरीकरण परिणामिक है। यह समाज के अन्दर असमानता पैदा करता है और इस असमानता को हम व्यक्ति के जीवनयापन के अवसरों और जीवन-शैली में देख सकते हैं।

(5) समाज के विभिन्न स्थाई समूह व श्रेणियाँ उच्चता और अधिकता के सम्बन्धों द्वारा परस्पर सम्बद्ध रहती हैं।

(6) सामाजिक स्तरीकरण कुछ व्यक्तियों तक सीमित न होकर सम्पूर्ण समाज में व्याप्त होता है। समाज में व्यक्तियों को प्राप्त पदों और परिस्थितियों के आधार पर इसे समझा जा सकता है।

शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव

शिक्षा और स्तरीकरण के मध्य महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। ये एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव निम्नलिखित रूप में दृष्टिगोचर होता है-

(1) निम्न परिवारों के बालकों की अपेक्षा बड़े तथा सम्पन्न परिवारों के बालक अधिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा पद तथा सम्मान दिलवाती है। इस तरह शिक्षा स्तरीकरण को प्रभावित करती है।

(2) जो देश सभी प्रकार की उत्तम शिक्षा की व्यवस्था करता है। योग्य एवं प्रतिभावान विद्यार्थियों को उत्पन्न करता है, वह देश अन्य देशों से प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में आगे बढ़ जाता है। यह स्थिति स्तरीकरण के कारण उत्पन्न होती है, क्योंकि अभिजात्य वर्ग के बच्चे योग्य होते हैं और उसी वर्ग से ऐसे विद्यार्थियों का जन्म होता है। इसका यह मतलब नहीं है कि निम्न वर्ग में ऐसे विद्यार्थी मिल ही नहीं सकते।

(3) शिक्षा ने ही पिछड़ी जातियों के सामाजिक वर्ग में परिवर्तन किया है।

(4) शिक्षा के कारण ही जाति व्यवस्था की जटिलता एवं संकीर्णता में शिथिलता आ गई है, जिसके कारण नये सामाजिक वर्ग बन गये हैं और बन रहे हैं।

(5) आज की शिक्षा केवल परम्परागत ज्ञान नहीं देती, वरन् व्यक्ति को कुशल डॉक्टर, इंजीनियर एवं कुशल कर्मचारी बनाती है। ये उपाधियाँ तथा उनके कार्य, नई सामाजिक स्थिति तथा स्तर को जन्म देते हैं। दूसरे शब्दों में, ये शिक्षित व्यक्ति स्तरीकरण को नया मोड़ देते हैं।

(6) स्वतन्त्र भारत में सभी जातियों के व्यक्तियों एवं परिवारों को ऊँची शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा है। इसके परिणामस्वरूप निम्न स्थिति वाले परिवारों का स्तर परिवर्तित हुआ है। उनकी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आया है।

(7) उच्च वर्ग के लोग अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में अध्ययन हेतु भेजते हैं और वे अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते हैं। ये बच्चे अपने आपको अन्य बालकों से उत्तम समझते हैं और उनके साथ मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते। निम्नवर्ग के बच्चों को पब्लिक स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता, क्योंकि वे इतना पैसा खर्च नहीं कर सकते।

(8) व्यक्ति में शिक्षा के द्वारा ही वर्ग चेतना उत्पन्न होती है और वह शिक्षा द्वारा अपनी क्षमता बढ़ाकर नये पद की प्राप्ति का प्रयास करता है।

(9) वर्तमान समय में शिक्षा का विकास हो रहा है और नये-नये शिक्षा के क्षेत्र खोले जा रहे हैं जो नये स्तरीकरण को जन्म दे रहे हैं।

सामाजिक स्तरीकरण का शिक्षा पर प्रभाव

सामाजिक स्तरीकरण समस्त शिक्षा व्यवस्था को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है -

(1) सामाजिक स्तरीकरण शिक्षा के उद्देश्यों के निर्माण को प्रभावित करता है। लोकतन्त्रीय वर्ग में शिक्षा के उद्देश्य जन वर्ग के विकास की दृष्टि से निर्धारित होते हैं और एकतन्त्रीय राज्य में शिक्षा के उद्देश्य कुछ व्यक्तियों की आकांक्षा के पोषक होते हैं।

(2) सामाजिक स्तरीकरण शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं। उच्च वर्ग एवं स्तर के व्यक्ति एक विशेष प्रकार की शिक्षा प्रणाली पसन्द करते हैं। ये अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं, जिनकी शिक्षा प्रणाली अन्य स्कूलों की शिक्षा प्रणाली से भिन्न होती है। उच्च वर्ग के लोग बेसिक शिक्षा प्रणाली तथा कॉमन स्कूल प्रणाली का समर्थन नहीं करते।

(3) सामाजिक स्तरीकरण के कारण ही विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। चूँकि विभिन्न वर्ग एवं स्तर के लोग विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करते हैं, इसलिए उनके सामाजिक स्तर एवं कार्य को ध्यान में रखते हुए अनेक प्रकार के पाठ्यक्रम हमारी शिक्षा प्रणाली में पाये जाते हैं।

(4) शिक्षकों का चयन भी स्तरीकरण से सम्बन्धित है। जैसी शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षा का पाठ्यक्रम होगा, उसी के अनुरूप शिक्षकों की स्कूलों में नियुक्ति की जायेगी। स्तरीकरण के प्रभाव से भिन्न-भिन्न पद के लोग अपने पद तथा स्थिति के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करते हैं और विद्यालय खोलते हैं। उनमें अपनी ही जाति एवं वर्ग के व्यक्तियों को शिक्षक के पद पर तथा अन्य पदों पर नियुक्त करते हैं।

(5) विभिन्न वर्गों से आये हुये बालकों की रुचियों, अभिरुचियों एवं मनोवृत्तियों में अन्तर होता है। अत: उसकी मानसिक एवं संवेगात्मक अभिवृत्तियों का विकास अलग-अलग ढंग से किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
  4. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  5. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  7. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  8. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
  9. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  10. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  14. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  15. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  17. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
  19. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  21. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
  22. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  23. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  24. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  25. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  26. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  27. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  28. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
  31. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
  32. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  33. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  34. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  36. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  37. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
  40. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
  43. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
  44. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  45. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  46. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  47. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  48. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  52. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  53. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  54. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  57. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  58. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
  62. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  63. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
  64. प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
  66. प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
  71. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
  72. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
  76. प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
  77. प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
  80. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
  82. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
  84. प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
  85. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
  86. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  88. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  91. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
  93. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
  95. प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
  96. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  97. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  98. प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
  103. प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
  105. प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
  106. प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
  107. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
  108. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  109. प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
  116. प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
  118. प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
  121. प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
  123. प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
  124. प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
  125. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।

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